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Martyrs Movie 2008 discussion part3
about mental condition of Mademoiselle. what she had actually did with herself ?
सही रास्ते से जाएं तो प्रयत्न का बड़ा फल शायद न मिले पर संतुष्टि मिलती है और रास्ता ग़लत हो अपनी एक भी कोशिश का, तो फल कितना ही ज्यादा मिले उससे संतुष्ट होने की संभावना कम रहेगी , वैसे संतोष को activate करना तो अपने संकल्प की बात होती है लेकिन चिंताओं को दूर करना और संतोष को activate करना , यह दो संकल्प तो मजबूत मन वाला इंसान ही कर पाता है और अच्छाई के कुर्बानी भरे रास्ते से ही हमारा मन इतना मजबूत हो सकता है कि संकल्प करके कम कमाई में भी संतुष्ट हो जाए। यह सिद्धांत असली दुनिया में हमारे मन पर लागू होता है और अगर Mademoiselle का चरित्र सत्य मान लें तो उस पर भी लागू होता है।
यह बात तो साफ है कि Moiselle की कोशिशें ग़लत दिशा पकड़ चुकी थीं लेकिन अगर कोई इंसान जीते जी afterlife को experience करना चाहे तो उसकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए कुदरत में भगवान् का बनाया क्या तरीका हो सकता है? क्यूंकि भगवान् हमारी हर इच्छा को पूरा करते हैं अगर रास्ता सही हो। मेरी नज़र में रास्ता सही है या नहीं? यह जानने का सबसे आसान तरीका है यह देखना कि चुना रास्ता हममें मानवता को बढ़ाता है या नहीं ? इंसान की इंसानियत ही इंसान को इंसान कहलाने लायक बनाती है इसीलिए अगर इच्छित फल पाने को लेकर हमारा चुना रास्ता हमारी मानवता को खत्म कर रहा है तो समझ लेना चाहिए कि वो रास्ता सही नहीं है ! Martyrs movie एक कल्पना है तो इस movie में भगवान् ने Moiselle को भी उसका परलोक दिखा दिया जिससे उसे यह तो जता दिया कि परलोक को जानने का उसका रास्ता सही नहीं है । भगवान् हमारे रास्ते का सच सबसे आखिर में सामने नहीं लाते बल्कि कोशिश शुरु करते ही कोशिश करने के लिए हमारे चुने रास्ते की सच्चाई का इशारा हमको करने लगते हैं पर यह इशारा शुरुआत में हल्का सा होता है । जैसे जैसे हम अपने चुने रास्ते पर आगे बढ़ते जाते हैं, हमारे चुने अच्छे बुरे रास्ते की सच्चाई को उजागर करता अंतरात्मा का यह इशारा तेज़ होने लगता है और हर बार इसे नजरअंदाज करना पहले से ज्यादा मुश्किल होता जाता है , आखिरकार एक वक्त वो भी आता है जब सच्चाई ही सामने आ जाती है और अब जिसे नजरअंदाज भी नहीं किया जा पाता! .... कोई इंसान दुःख उठाकर भी अच्छाई में जीता है लेकिन बुराई का साथ नहीं देता तो समय बीतने पर समय भी अगर उसे बदल नहीं पाता तो मन में बढ़ती शांति उसे अंतरात्मा का इशारा होती है कि उसका रास्ता सही है , अब अगर अच्छाई के रास्ते बना रहे और घमंड करके अपनी महसूस करने की क्षमता न घटाए तो अच्छे इन्सान के लिए मन में बढ़ती शांति ऐसा इनाम बन जाती है जिसकी वजह से अच्छाई के रास्ते पर कष्ट सहना और बुराई के दिए लालच में नहीं आना बहुत आसान हो जाता है । दूसरी ओर अगर रास्ता ग़लत है तो शुरूआत में राहत बढ़ती लगती है जबकि शुरूआत से ही हममें मानवता घटने लगी होती है लेकिन फिर भी ग़लत रास्ता चुनते ही राहत मिली जबकि ईमानदारी का रास्ता चुनते ही संघर्ष शुरु हो जाता है। ग़लत रास्तों पर जल्दी से मिलने वाली यह राहतें शराब का नशा करने जैसी ही होती हैं जैसे शराब के रास्ते शरीर को गला कर मन को आनंदित करने की कोशिश होती है , शराब का नशा सही नहीं इसीलिए बुराई का रास्ता भी सही नहीं।
बुराई के रास्ते पर कदम रखते ही यह इशारा मिल जाता है कि मानवता घट रही है या आगे घटेगी ज़रूर लेकिन कदम रखते ही जीवन के संघर्ष में राहत मिलती है, क्योंकि शैतान पहले देता है और फिर सब लूट लेता है , सब बुराई में रमे इंसानों के स्वभाव में यही एक बात एक सी होगी। जल्दी से मिली राहत से मन को भ्रम हो जाता है कि रस्ता सही है जिसे छोड़ना नहीं चाहिए लेकिन बुराई के रास्ते पर कदम रखते ही शुरुआत में मिलने वाली राहत तूफान आने से पहले की शांति जैसी होती है ।आगे जल्दी ही फिर "ग़लत रास्ता ग़लत क्यों है?" यह कारण समझ आने लगते हैं लेकिन मन एक बार जिसके सही होने का विश्वास कर ले उसे आसानी से ग़लत मान नहीं पाता , फिर चाहें हमारे ग़लत रास्ते पर बढ़ने से दूसरों का कितना ही दुःख और हममें मानसिक तनाव क्यों न बढ़ता दिखे पर मन उसी भ्रम में रहता है कि "रास्ता सही है ।" आगे भी अंतरात्मा बुराई की राह चलते इन्सान को पथ बदलने के लिए कई इशारे करती है लेकिन बुराई एक दलदल के रूप में बताई जाती है जिसमें जितना हम धंसते चले जाते हैं , बाहर निकलना उतना ही मुश्किल होता जाता है ,क्यूंकि ऐसा नहीं है कि बुरे इंसान की अंतरात्मा उसे सही इशारे करना बंद कर देती है , लेकिन बुराई के रास्ते पर इंसान अंतरात्मा की आवाज़ को इस हद तक दबाना सीख जाता है कि जल्दी ही उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा होता । Martyrs की कहानी इसीलिए सच्चाई के नज़दीक है क्योंकि Moiselle का चरित्र इस तरह की जीवनयात्रा को उजागर करता है क्योंकी movie की कहानी में Moiselle उस रूप में दिखाई गई है जब उसे अंतरात्मा की आवाज़ को दबाने की बहुत आदत हो गई थी।
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बुरे लोगों को उनकी अंतरात्मा बुराई को छोड़ने के लिए कहती ही रहती है और अच्छे लोगों को उनकी अंतरात्मा लगातार अच्छाई पर बने रहने के लिए ही प्रेरित करती रहती है । कई बार अच्छे लोगों से बुरे लोगों का टकराव हो जाता है जिससे अच्छे लोगों का संघर्ष बुरे लोगों को उनकी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने में मदद करता है तब भी बुरे लोग सही रास्ते लौट आते हैं लेकिन कहानी में Moiselle के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था ।Moiselle अंतरात्मा के हर इशारे को दबाती रही और उसका चुना गलत रास्ता मासूम लोगों की जिंदगी को नर्क बनाता गया। Moiselle तो एक फिल्मी चरित्र है इसीलिए वो अपनी बुराई को उस हद तक ले गई लेकिन असल जिंदगी में हर बुरा इन्सान इस हद तक नहीं जा पाता और जाना चाहिए भी नहीं तो इसीलिए सूत्र सत्य है कि ,"बुराई के रास्ते नहीं तेरे वास्ते ।" छोटी सी बुराई भी है तो वही बीज जिसको बढ़ने का मौका मिलते ही इसी दुनिया में नर्क की रचना होने लगती है ,यानि बुराई के रास्ते जाते हुए हम दूसरों की जिंदगी नर्क बना सकते हैं, और जो लोग अपनी बुराई को उस हद तक बड़ा नहीं पाते तो भी खुद बुरे बने रहकर वो दूसरों की जिंदगी मुश्किल ज़रूर बना देते हैं जबकि हमें सुख तो कैसे भी मिल सकता है लेकिन शांति तो तभी मुकम्मल होगी जब हमारी सेवा से या हमारे जीवन जीने के तरीके से दूसरों को शांति पाना पहले से ज्यादा आसान हो सके।
कहानी में Moiselle ने दूसरो की जिंदगी मुश्किल नहीं बनाई थी बल्कि नर्क जैसी बदतर बना दी थी , उनके श्राप से Moiselle को अंतरात्मा की आवाज़ सुनना और भी मुश्किल हो गया होगा , हालांकि इशारे अब भी थे जैसे कि ग्रंथ और इनमें लिखी परलोक की बातें , स्वर्ग और नर्क के descriptions और सनातन धर्म में तो ऐसे ऐसे descriptions हैं जो बहुत ही ज्यादा detailed भी हैं ।
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Moiselle ने भी इनमें से कुछ तो ज़रूर ही पढ़े होंगे क्योंकि कहानी के मुताबिक वो परलोक की पढ़ाई करने वाली student थी , तो भी उसके दिमाग में यह क्यों नहीं आया कि ," यह भी तो किसी के पारलौकिक अनुभवों के descriptions ही हैं जो ग्रंथों में वर्णित हैं। " और अगर Moiselle को खुद ही सत्य का अनुभव पाना था तो साधना का मार्ग तो उसके लिए भी खुला हुआ था : व्रत उपवास जो कईं तरह के होते हैं, जिनमें अपने तन को तपा कर मन को शुद्ध बनाया जाता है और इसका एक मकसद यह भी होता है कि मन इतना शुद्ध हो जाए कि परलोक व परमात्मा का कुछ एहसास मिल सके और यह व्रत सरल से लेकर कठिन से लेकर अत्यंत कठिन प्रकार के भी होते हैं लेकिन सब यही संदेश देते हैं कि अपने मन को शुद्ध बनाने से ही कोई पारलौकिक सफलता वास्तव में हासिल होती है। जैन धर्म में संथारे का एक व्रत होता है जिसमें शरीर की मृत्यु होने तक उपवास किया जाता है। ... जो लोग यह व्रत करते हैं वो धीरे धीरे अपने आप को मौत के करीब ले जाते हैं अब इसे सही कहें या ग़लत? पर एक बात तो सच है कि उन्हें भी कई पारलौकिक अनुभव होते होंगे लेकिन संथारे का व्रत वही इंसान रख सकता है जिसकी समस्त इच्छाएं पूरी हो गई हों यानि जिसे मोह नहीं रहा , ऐसे ही इन्सान संथारे के व्रत को निभा पाते हैं तो वो प्रचार किस संदेश का करते हैं? वही संदेश कि जीते जी परलोक का अनुभव करना है तो ज़रूरी नहीं कि संथारे का व्रत रखा जाए लेकिन मन के मोह को मिटाना ज़रूरी है और खुद के सुखों का जितना हो सके त्याग करना चाहिए । जैन धर्म सदा ही खुद से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचने को प्रेरित करता है और दूसरों को परलोक सुधार के basics समझाने के लिए ही कुछ श्रद्धालु संथारे के व्रत द्वारा बड़ी कुर्बानी देते हैं । .... यह बातें वाकई सच्ची हैं कि अपना सुख सीमित करके अपने मोह को काबू करके हम दूसरों के लिए सुख शांति पाना आसान बना सकते हैं और इस तरह मन इतना शांत और संवेदनशील हो पाता है कि परलोक को महसूस करने लगे , हम वास्तव में पारलौकिक अनुभव पाने के लिए अच्छाई के रास्ते पर चलकर मिलने वाली शांति की एहमियत समझते आए हैं। धर्म परलोक में विश्वास करना सीखता है यानि परलोक में विश्वास करना ज़रूरी बताता है लेकिन धर्म इसके सुधार के लिए कुर्बानी देना भी सिखाता है, हमारे माध्यम से दूसरों को भी सिखाता है लेकिन कहानी में Moiselle ने सबकुछ उल्टा किया था खुद कुर्बानी देने से बची और दूसरों को कुर्बानी देने के लिए मजबूर किया क्योंकि बुराई के रास्ते पर हममें खुद कुर्बानी देने की क्षमता नहीं बचती , बुराई का स्तर छोटा हो या बड़ा लेकिन बुराई मन में होने पर हमेशा हम दूसरों से कुर्बानी की उम्मीद करते हैं और उन्हें इसके लिए मजबूर भी करते हैं .... आलस में भी हम ऐसा ही करते हैं और घमंड में भी इसीलिए इसीलिए आलस और घमंड इंसान की सबसे बड़ी बुराई माने गए हैं।.....
To be continued
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