Tusk and Tooth : Migrating Elephant are going to get their Nightmare ; A strange creation of Nature
Tusk and Tooth की कहानी : भाग 2
प्रवास की यात्रा पर पहले मुश्किल दौर में ही लोका के हाथियों को आसपास मंडराते शिकारियों की मौजूदगी का एहसास हो गया था । क्योंकि शिकारी जानवर, शाकाहारी जीवों के किसी इतने बड़े झुण्ड को उनके सुरक्षित इलाके से निकलकर एक अनजान इलाके में घूमते देखने के आदी नहीं होते थे उस वक्त ,तो दिलचस्पी तो जगनी ही थी। .... शिकारी जानवर हैरान थे पहली बार इस तरह से अपने रास्ते पर आगे बढ़ते किसी शाकाहारियों के झुण्ड को देख कर ।रेगिस्तानी इलाके में पानी की तलाश में रेगिस्तान में और भी अंदर की ओर सफर करते जा रहे हाथियों के झुंड को देख फिलहाल तो शिकारी जानवर जैसे शेर चीते और लकड़बगघे समझ नहीं पा रहे थे कि इस झुण्ड को हुआ क्या है ?.... देखकर तो लगता था कि उन सभी hunter animals कि शिकारी वृत्ति को उनकी हैरानी ने सुला दिया था और सभी जैसे बस इस झुण्ड को इस तरह बेतरतीब बेखौफ यात्रा करते देख रहे थे दूर से, पर इतना भी दूर नहीं थे कि लोका के हाथी यह देख न सकें कि उन्हे देखा जा रहा है!
रास्ते, सुखी पीली पड़ चुकी लंबी लंबी झाड़ियों से भरे थे और काफी चलते जाने पर रास्ते के पास 1-2 पेड़ अब भी हरे मिल जाते थे जो इस झुण्ड की कम ही सही पर खुराक थे । यह रेगिस्तानी इलाका अंतहीन लगता था, उन दिनों इन हाथियों को एक बात समझ में आई और वो यह कि वो हमेशा से एक रेगिस्तान में ही रह रहे थे लेकिन जब तक बारिश हर साल समय पर होती रही, कुछ पता नहीं चल पाया था।
आसपास मंडराते शिकारी जानवर किस उलझन में हैं जो हमला करने से कतरा रहे हैं ? यह हाथियों को तब समझ नहीं आ पाया था, लेकिन कोई वजह तो थी ज़रूर। पर क्या वो वजह इतनी ताकतवर भी थी कि तमाम शिकारी जीव इन्हें बस जाते हुए देखते रहते और हमला नहीं करते? मुख्य रूप से वो इलाका शेरों का ही था जहां से होकर इस वक़्त लोका का झुण्ड गुज़र रहा था। और अगर शेर इतने सारे हाथियों को एक साथ देख कर हैरान थे और इस हैरानी में वो यह भी भूल गए थे कि उन्हें अपने कुदरती व्यवहार का पालन करते हुए हाथियों को शिकार बनाने की कोशिश करनी चाहिए , अगर शेरों के अजीब व्यव्हार के पीछे यही बात थी तो इतना तो है कि हाथियों को मिला यह कवच इतना कमज़ोर था कि अगर एक शेर भी हाथियों के झुण्ड को घेरने की कोशिश करता तो सारे ही शेर यही कोशिश करते शुरू हो जाने वाले थे। लेकिन शेरों के अब तक ऐसा नहीं कर पाने की वजह कुछ और थी और रेगिस्तानी इलाके के बीचोबीच वो वजह लोका के हाथियों के सामने उजागर हुई जब उन्हें एक हाथी का कंकाल मिला जिसे शेरों ने शिकार करके मार डाला था।... वैसे आजकल तो शेर हाथी का शिकार करने की कोशिश नहीं करते जब तक खाने की बहुत कमी न हो जाए और हालांकि इस झुण्ड के किसी हाथी ने कभी किसी शेर को हाथी का शिकार करते भी नहीं देखा था लेकिन समझदार जीव हाथी हमेशा सावधान रहता है उसे सावधान रहने के लिए सबूत की जरूरत नहीं होती इसीलिए कथाओं में गणेश जी का शीश काटने के बाद शंकर जी ने नया शीश हाथी का लगाया गणेश जी को ताकि गणेश जी आगे सहज सावधान रह सकें।
बहरहाल एक शिकार हुए हाथी का कंकाल देखकर झुण्ड के कम उम्र के शावक ही नहीं बल्कि वयस्क हाथी भी डर गए यह सोचकर कि इस इलाके में ऐसे शेर मौजूद हैं जो हाथी के खून का स्वाद भी जानते हैं ! यह जान लेने के बाद हाथियों ने सबसे पहले बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की और "बच्चे झुण्ड में ठीक से वयस्कों से घिरे हैं" यह सुनिश्चित कर लेने के बाद हाथियों के मन में अगला सवाल था कि अगर इस इलाके में रहने वाले शिकारी जानवर इतने निडर हैं कि एक हाथी को भी मार गिराते हैं तो अभी तक कुछ किया क्यों नहीं और यह हाथी यहां कहां से आया?
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लोका के हाथी जब थोड़ा आगे चले तो कुछ शेरों के कंकाल भी वहां थे और कुचले हुए बहुत से पेड़ भी थे; पेड़ों को जिस तरह कुचला गया था यह सिर्फ हाथी के बूते की ही बात थी कि इतने बड़े पेड़ों को भी उखाड़ दिया था ।..... ऐसा लगता था कि शेरों के इस इलाके में भी कुछ समय पहले सूखे की शुरुआत के दौरान हाथियों का एक दूसरा झुण्ड या तो रहता था या कहीं से आकर रुका था और इलाके में रहने वाले शेरों से उनकी मुठभेड़ हो गई थी। इलाके में गुज़रे वक़्त को लेकर जो सबूत बिखरे पड़े थे उन्हें देखकर लगता था कि हुआ यह होगा कि लोका से भी पहले हाथियों का एक दूसरा झुण्ड प्रवास की यात्रा पर था और वो इस इलाके में रुक गए थे । शेर यूं तो हाथियों का शिकार नहीं करना चाहते थे क्योंकी शेरों को इतने बड़े जीवों का शिकार करने की उस वक़्त इतनी आदत नहीं थी लेकिन अपने इलाके का बचाव करना और अपने इलाके में रहते हुए अपना बचाव करना यह तो उनकी मजबूरी थी और इस चक्कर में कईं शेर मारे गए तो तब इलाके के शेरों को हाथियों का शिकार करना सीखना पड़ा हाथियों को डराने के लिए।.... आवश्यकता आविष्कार की जननी है और यह नियम जंगल जगत में भी उतना ही लागू है।
आखिरकार शेरों ने एक वयस्क हाथी को झुण्ड से अलग खदेड़ कर मार गिराया। हालांकि हाथियों ने भी बाद में शेरों को अपने साथी की लाश के पास से भगा दिया । क्योंकि हाथी हमेशा से एक सामाजिक जानवर रहा है , उसे अपने प्रियजनों को मारे जाते देखने की आदत नहीं होती।.... अपने एक साथी की ऐसी मौत से उन हाथियों को धक्का लगा होगा और वो इलाके को छोड़कर आगे बढ़ गए । उस समय जब वो हाथी यहां से गए ,यह इलाका आज के मुकाबले ज्यादा हरा भरा रहा था। ..... हाथियों को तो अपने मर चुके साथी को छोड़कर चले जाना पड़ा और शेर कई दिनों तक उस हाथी की दावत उड़ा कर जीत का जश्न मनाते रहे।.... जहां तक बात है लोका के झुण्ड पर हमले की तो शेर हैरानी की वजह से नहीं रुके हुए बल्कि सही मौका देख रहे हैं और बड़ी कीमतें देकर पाए हाथियों का शिकार करने के अपने पुराने हुनर को जगा रहे हैं। लोका के हाथियों को वक़्त रहते यह समझना होगा लेकिन फ़िलहाल तो हाथी यह समझ गए थे कि प्रवास पर निकलने वाले वो पहले हाथी नहीं थे।
समय ने ही शेरों को हाथियों का शिकारी बनाया और समय ने ही लोका के इन हाथियों को अपनी इस नई रचना से रूबरू होने तक ज़िंदा भी रखा , मगर अब क्या होने जा रहा है ? ... क्या कोई इशारा है?
Sumit Verma
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