"Chintu ka birthday" movie really have some confusions in their story base.
Why both of them soldiers were act like against their training?
Something has really missed in this story . Let's find out!
This blog is in Hindi"चिंटू का बर्थडे",यह फिल्म काफी अच्छी है ,काफी सस्ती है ,मेरे कहने का मतलब ज्यादा लंबी फिल्म नहीं है और story base भी बढ़िया है कि एक सेल्समैन जिसका नाम मदन होता है इराक़ जाता है फिर बाद में उसका पूरा परिवार उसके साथ वहीं रहने लगता है और सब खुश थे लेकिन फिर इराक़ पर अमरीका हमला कर देता है।क्यूंकि अमरीका किसी को भी हिटलर बनने का मौका नहीं देता इसीलिए हिटलर के नक्शे कदम पर चलता अगर महसूस होता है कोई भी नेता अमरीका को तो अमेरिका उसे खतरे की नज़र से देखने लगता है।
चिंटू का परिवार इराक़ में फंस जाता है क्यूंकि कहानी के मुताबिक मदन ने ज़िन्दगी में एक ही सबसे बड़ी गलती की थी कि वो खुद तो नकली पासपोर्ट पर इराक़ आया ही था लेकिन परिवार के पास रहने की चाहत में नकली पासपोर्ट पर अपने पूरे परिवार को भी बगदाद ले आया।तो जब जंग छिड़ी तो नकली पासपोर्ट काम नहीं आए और पूरा परिवार युद्ध झेल रहे बगदाद में फंस गया। नकली या झूठी बातें सबसे ज्यादा जरूरत वाले समय किसी काम नहीं आती यह तो सच है ।धर्म में इसी बात को इस तरह से कहा गया है कि पाप कर्म ,नकली कर्म हैं इसीलिए परलोक की यात्रा में यह हमारे काम नहीं आएंगे बल्कि हमको नर्क में फंसायेंगे जैसे मदन जंग की आग में जल रहे बगदाद में सपरिवार जा फंसा।
लेकिन मदन में एक अच्छी बात थी कि इससे उसने सीखा कि ज़िन्दगी में झूठ के भरोसे कोई कामयाबी या खुशी पाने की कोशिश कभी भी नहीं की जानी चाहिए।मदन ने आगे की ज़िन्दगी में इसे याद रखा और लगभग पूरे परिवार ने उसे क्षमा भी कर दिया सरला देवी को छोड़कर।
कहानी में बताया गया कि बग़दादी लोगों से अमरीकी लोगों की भिड़ंत हो रही है लेकिन अमरीकी सैनिक बगदाद में रहने वाले विदेशी लोगों को कुछ नहीं कह रहे वरना "चिंटू का बर्थडे",यह कल्पना मुमकिन हो ही नहीं सकती थी। चिंटू परेशान था पिछले 1-2 सालों से क्यूंकि जंग के चलते वो अपना जन्मदिन ठीक से नहीं मना पा रहा था लेकिन इस बार पूरी family ने तय कर लिया कि चिंटू का इस बार वाला जन्मदिन अच्छे से मनाना है लेकिन जन्मदिन वाले दिन जन्मदिन की चलती तैयारियों के बीच घर के बाहर बम फटा ,और दो अमरीकी सैनिक मदन के घर पर तलाशी लेने चले आते हैं और फिर चिंटू की बर्थडे पार्टी का कबाड़ा होते होते बचता है जिस बारे में आप जानते ही होंगे अगर आपने फिल्म देखी है तो ।अब मैं बात करूंगा उन facts की जिन facts ने इस फिल्म को देखने का मज़ा मेरे लिए किरकिरा कर दिया था।
जब बच्चे आए तो दरवाजा अमरीकी सैनिक को नहीं खोलना चाहिए था बल्कि अमरीकी सैनिक मदन,सरला या चिंटू की बहन लक्ष्मी को दरवाज़ा खोलने के लिए कहता ,वो भी साथ में जाता लेकिन आड़ में छुपा रहता ताकि चिंटू की बहन कोई होशियारी न कर सके किसी को उनके बारे में बताकर क्यूंकि दरवाजे पर कोई पड़ोसी हो सकता था और क्यूंकि दोनों अमरीकी सैनिक वहां फंस चुके थे तो किसी पड़ोसी की नज़र में आने का जोखिम लेने का तुक नहीं बनता , हालांकि मदन और उसका परिवार धोखा देने वालों में से नहीं था यह हम जानते हैं लेकिन वो अमरीकी सैनिक यह नहीं जानते थे उस वक़्त इसीलिए उन्हें पूरी मदन family पर कड़ी नजर रखनी चाहिए थी क्यूंकि वो लोग एक इराक़ी आदमी को छुपाते हुए पकड़े गए थे ।अगर मैं उन दो अमरीकी सैनिकों में से एक की जगह होता तो इस संगीन हरकत को क्षमा नहीं करता ।पूरे परिवार में सबको बांध कर ज़मीन पर बैठा देना मेरी सहज प्रतिक्रिया होती।लेकिन यहां भी अमरीकी सैनिकों ने नरमी से काम लिया।खुद ही दरवाज़ा खोला और चिंटू के दोस्त बिना डरे घर के अंदर भी चले आए क्यूंकि वो उस सिपाही को जानते थे जिसने दरवाज़ा खोला लेकिन सिपाही Louis ने दरवाज़ा खोला ही कर्मों? होना तो यह चाहिए था कि दरवाज़ा चिंटू की बहन खोलती ,सिपाही Louis आड़ में उस पर बंदूक ताने होता और कोशिश बच्चों को भगाने की होती यह कह कर कि पार्टी नहीं होगी। लेकिन अगर बच्चे अंदर आना चाहते ,वो कहते कि ,"हम तो अपने दोस्त चिंटू से मिल कर ही जाएंगे" तो Louis चिंटू की बहन को इशारा देता कि ,"चुपचाप इन्हें अंदर ले लो" बच्चों के अंदर आते ही Louis झटके से दरवाजा बंद कर देता और gun की नोक पर सबको कहता कि," बिना शोर किए सब कमरे में चलो" भले ही Louis उन बच्चों को जानता ही कर्मों न हो ! बच्चों को कमरे में बंद कर दिया जाता और घर के बड़े लोगों के हाथ अभी भी बंधे होते।
बंधे बंधे सरला देवी की तबीयत खराब होने लगी होती तो तब दोनों सिपाहियों ने उन्हें और लक्ष्मी को खोल दिया ताकि लक्ष्मी सरला का ध्यान रख सके पर सुधा और मदन अभी भी बंधे ही रहे होते ।
दूसरी दिक्कत यह कि जब भारत से फोन आया तो भी Louis ने सुधा को फोन उठाने दिया वो भी अपने ही साथी Darren से छुपाते हुए । एक सिपाही के नाते Louis को उन्हें बात नहीं करने देनी थी । या अगर बात करने भी देता तो स्थिति के मुताबिक मैं Louis से यह सुनने की उम्मीद कर रहा था कि वो सुधा से कहेगा ,"talk to anyone but in my native language!" Louis बस इतनी ही इराकी भाषा जानता होगा कि बस सुन कर वो इतना बता सकता है कि जिस भाषा में बात हो रही है वो इराक़ी भाषा है या नहीं? तो अगर सुधा हिंदी में भी बात करती तो भी यह कम खतरे वाली बात होती louis के लिए लेकिन वो सुधा की कनपटी पर बंदूक ताने रहता ताकि अपनी भाषा में भी सुधा कोई information लीक न करे। लेकिन Louis ने यहां भी नरमी दिखाई; दोनों सिपाहियों को सिपाही होने के नाते जो करना चाहिए था वो करने के बजाय वो दोनों ही पूरी फिल्म में बहुत अजीब हरकते कर रहे थे जैसे कि उन्हें उनके उच्चाधिकारियों ने कह रखा हो कि," इलाके में अगर कुछ विदेशी लोग मिलें तो उनसे बहुत नरमी से पेश आना और उन पर भरोसा करना ।" नरमी से पेश आने वाली बात तो समझी जा सकती है लेकिन भरोसा करने वाली बात नहीं समझी जा सकती क्यूंकि ऐसा कहा नहीं जा सकता किसी भी सिपाही को कि ,"अजनबियों पर भरोसा करना तुम" लेकिन Louis बार बार यही कर रहा था और अपनी और अपने साथी की सुरक्षा खतरे में डाल रहा था।
इतना तो है कि यह सब समस्याएं अगर फिल्म में दूर कर ली गई होती तो चिंटू का बर्थडे कभी मन ही नही सकता था क्यूंकि इस तरह से बढ़ती कहानी में चिंटू इतना डर जाता कि end आते आते खुद ही कह देता कि ," मैं अब कोई जन्मदिन नहीं मनाना चाहता।" अगले कई सालों तक चिंटू के जन्मदिन खट्टे हो जाते।
तीसरी दिक्कत या फिल्म का तीसरा अजीब seen मुझे जो लगा वो यह लगा जब चिंटू का बर्थडे मनाने के दौरान मदन को फोन आया था और फोन भी किसका ? अपने मेहंदी भाई का।तब Darren यह देखता है कि ,"अरे इसके पास तो बहुत देर से मोबाइल है !" तब Darren यह सोच कर नहीं डरा कि,"पता नहीं इसने किस किस को फोन कर दिया होगा ?" बल्कि Darren ने भी सुरक्षा की भावना को भुलाकर इसे नजरअंदाज किया जबकि मैं उम्मीद कर रहा था कि Darren को भयानक गुस्सा आ जाएगा यह देखकर ,तब Louise कहता Darren से कि ," I gave him the phone" और जैसे ही Louise यह कहता दोनों सिपाही एक दूसरे से बहस करने लगते ,मार कुटाई भी हो सकती थी दोनों के बीच ,लेकिन Darren ने भी फिर से एक बार सिपाही होने के नाते जो उसे करना चाहिए था उसने नहीं किया। और इस तरह आखिर में मेरे लिए मूवी का सबसे अजीब seen वो बन गया जब Darren फैसला लेता है मदन को छोड़ देने का क्यूंकि मुझे वो कारण समझ नहीं आया जिससे प्रभावित होकर Darren ने मदन को छोड़ देने का फैसला लिया।.... दोनों सिपाही पूरी फिल्म में मन से काम ले रहे थे बजाय दिमाग से काम लेने के ,तो अब मैं यह सोच रहा हूं कि क्या यह किसी असली घटना से प्रभावित कहानी है क्यूंकि कई बार कल्पना से भी ज्यादा अजीब तो सच्चाई हुआ करती है।
Sumit Verma
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