Is there a bad effect of viewing Destruction based movies continuously?
Hollywood की ज्यादातर science fiction फिल्मों में पृथ्वी को लेकर यही भविष्यवाणी है आजकल कि पृथ्वी तबाह होने वाली है। ऐसी हर movie को अगर हम एक भविष्यवाणी मानें तो किसी( movie) के मुताबिक पृथ्वी 50 साल में तबाह होने वाली है ,किसी के मुताबिक 100 सालों बाद पृथ्वी तबाह हो जाएगी , किसी के मुताबिक 150 साल बाद ,तो किसी के मुताबिक 200साल ,300साल ,400साल बाद पृथ्वी तबाह होनी है पर overall एक दिन पृथ्वी तबाह होगी, यह तो पक्की बात है... चाहें हम "2012" की बात करें जिसमें पृथ्वी थोड़े समय के लिए तबाह होती है या " Terminator" movie series या "Matrix" movie series की जिसमें अलग कारण से पृथ्वी तबाह हो जाती है और भी अनेकों फिल्में हैं दुनियाभर में जो इसी बात का समर्थन करती हैं यहां तक कि अब तो "Walle" जैसी animated फिल्मों में भी इसी को दिखाया जा रहा है कि तबाह होने के बाद पृथ्वी कैसी दिखेगी ? Bollywood में तो other countries जैसा तगड़ा VFX फिलहाल इस्तेमाल नहीं किया जाता है इसीलिए हम अभी भी प्यार मोहब्ब्त के संदेश ही बांट रहे हैं ,लेकिन अगर bollywood में तगड़ा VFX इस्तेमाल हो रहा होता तो मैं sure हूं इस बात को लेकर कि हम बॉलीवुड वाले भी पृथ्वी को तबाह करने निकल पड़ते ! पर आपने कभी यह सोचा कि हमारी मानसिकता में यह सोच क्यों घुसी पड़ी है कि पृथ्वी तबाह होकर रहेगी और हम दूर चले जाएंगे?....हम ऐसा मानते तो हैं क्यूंकि अगर ऐसा न मानते होते तो क्यों हमें पृथ्वी के विनाश की कल्पना सच्ची लगती बजाय पृथ्वी के बसे रहने की कल्पना के ?
मुझे एक सिर्फ "Passengers" movie ही याद आ रही है जिसमें दिखाया गया कि पृथ्वी तबाह तो नहीं होती लेकिन जनसंख्या इतनी बढ़ जाती है कि 5000 इंसानों को दूसरे ग्रह भेजना पड़ गया था,लेकिन अगर आपने गौर फ़रमाया हो तो पाएंगे कि उस movie में भी माहौल साल 2150 के आस पास का ही था यानि "passengers" movie भी इसी बात का समर्थन करती है कि भविष्य में ज्यादा आगे जाते रहने पर पृथ्वी के बसे रहने की कल्पना आसान नहीं है, पर मैं मानता हूं कि अगर हम इसी तरह सोचते रहेंगे तब तो शायद हमारी पृथ्वी हमारी इस सोच से ही तबाह हो जाएगी!
तो carefully अगर हमने अब science fiction movies को देखने में,उनका मज़ा लेने में सावधानी नहीं बरती तो science fiction फिल्में हमें पृथ्वी से जाने की तैयारी से जुड़ी बातों पर ही focused रखेंगी जबकि ज़रूरत पृथ्वी को बचाने की तैयारियों पर ध्यान देने की ज्यादा है इस समय। तो चलिए आज एक ऐसी movie की बात करते हैं जिसमें पृथ्वी पर प्रलय तो हुई लेकिन इस सुंदर movie की कल्पना में मनुष्य पृथ्वी से दूर नहीं गए बल्कि पृथ्वी से जुड़े रहे और दूसरे ग्रहों तक मनुष्य की पहुंच हो जाने के बावजूद भी इस movie की कहानी में मनुष्य ने पृथ्वी की रक्षा जी जान से की। आपने ज़रूर देखी होगी यह movie , नाम है "The Fifth Element" , जो आई थी साल 1997 में।
"The Fifth Element " movie की कहानी में दिखता है कि इंसान किसी वजह से बादलों के पार जाकर रहने लगा है । साल 2297 के आसपास का माहौल है। कहानी में दिखता है कि साल 2297 में इंसान ने इतनी ऊंची इमारतें बना ली थीं कि कहना गलत नहीं होगा कि साल 2280 के आस पास इंसान सातवें आसमान जितनी ऊंचाई पर रहने लगा था। यह वाकई सोचने वाली बात है कि इतनी ऊंची इमारतें क्यों बनानी पड़ीं?जितना मैं समझता हूं तो इसका कारण सिर्फ अपनी वैज्ञानिक तरक्की का दिखावा तो नहीं ही था ।
जहां तक मेरा मानना है, यह कहानी है उस वक़्त के बाद की जब दुनियाभर में भयंकर परमाणु युद्ध हुए कईं साल बीत चुके थे । ज़मीन पर नहीं रहा जा सकता था क्योंकि अभी भी वहां रेडियेशन फैला हुआ था तो इसीलिए इंसान ने इतनी ऊंची इमारतें बनाई जो ज़मीन के रेडियेशन से उसे दूर रख सकें। .... आवश्यकता यहां आविष्कार की जननी बनी और मनुष्य के हाथ ऐसी ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धियां आईं जो उसने सोची भी नहीं थीं और यह सब इसीलिए हुआ क्यूंकि इंसान ने पृथ्वी छोड़कर जाने की कोशिश नहीं की बल्कि बसे रहने की ही कोशिश की तो विज्ञान में सबसे पहले ऐसे आविष्कार हुए जिन्होंने मानव को नई बदली स्थिति के अनुसार अपने नए घर बनाने और उनमें बसने में मदद की वो भी अब जब पृथ्वी पर रहना लगभग नामुमकिन हो गया था।
रेगिस्तानी इलाकों में अब भी ज़मीन पर रहा जा सकता था क्योंकि वहां इतने परमाणु हमले नहीं हुए थे ।लेकिन इंसान ने फिर भी माउंट एवरेस्ट जैसी ऊंची ऊंची इमारतें बनाने का फैसला किया और इस ऊंचाई पर जीवन आसान बनाने वाले तरीकों को भी आखिरकार विकसित कर लिया। यानि कि The Fifth Element फिल्म में Corbin जैसी taxi चलाता था वैसी टैक्सी अगर आज हमें मिल जाए तो उस टैक्सी से हम बड़े आराम से माउंट एवरेस्ट के शिखर तक भी जा सकते हैं, नहीं तो वैसे यह काम बहुत मुश्किल होता है।
"Fifth Element" movie की कहानी मुझे इसीलिए पसंद है क्यूंकि हमें इस वक़्त ज़रूरत है पृथ्वी को बचाने के बारे में सोचने की और The Fifth Element movie में भी पृथ्वी को बचाने की ही जंग लड़ी गई थी चाहें इसके लिए अंतरिक्ष में ही क्यों न जाना पड़ा। तारीफ की हकदार हैं ऐसी फिल्में जो हममें इस भावना को बढ़ाती हैं जैसे कि Terminator , Matrix, Resident Evil ,2012, I am legend etc. 2012movie इसमें सबसे आगे है क्योंकि Earth के प्रति हमारे नज़रिए को यह movie झकझोरने लगती है ...इंसान अगर शांत समय में ही प्रलय को महसूस कर पाए यानि कि अपने जीवन के अंत को ,तो वाकई में सुधार बहुत आसान हो जाता है।
पृथ्वी को बचाने के नज़रिए से अगर मैं कहूं तो Terminator , Matrix, Resident Evil और ऐसी ही दूसरी फिल्में काफी environment friendly हैं क्योंकि हमें जताती हैं कि चाहें जो हो जाए हमें रहना इसी पृथ्वी पर है इसीलिए हमें इसकी चिंता रखनी चाहिए।.... पृथ्वी से जाने की हम सोचें तो या तो हमें किसी यान में रहना होगा या पृथ्वी जैसे किसी दूसरे ग्रह पर लेकिन हो सकता है कि ब्रह्मांड भर में भटकने के बाद भी हमें पृथ्वी जैसा दूसरा ग्रह न मिले,हो सकता है कि को ग्रह दूर से पृथ्वी जैसे दिखते हैं वो पास से पृथ्वी जैसे न भी हों!
एक एक कर film wise बात करूं तो Terminator movie में Skynet एक तरह से प्रदूषण का रूप है और Matrix movie में मशीनों का साम्राज्य भी और इन दोनों फिल्मों की कहानी में अंतरिक्ष में जाने की क्षमता होने के बावजूद भी इंसानों ने पृथ्वी को छोड़कर चले जाने के बजाय पृथ्वी के लिए लड़ना ही चुना । "Resident Evil" और " I am the legend" movie में भी इंसान ने फैलते वायरस के डर से पृथ्वी छोड़कर चले जाना नहीं चुना ।...फिल्मों की कहानियां कल्पनाओं का रूप हैं और अगर कल्पनाओं से वास्तविक प्रेरणा लेने की बात है तो वाकई में हमको इस वक़्त पृथ्वी से जाने के संघर्ष की प्रेरणा से ज्यादा पृथ्वी को बचाने के संघर्ष की प्रेरणा की जरूरत है क्यूंकि हरियाली घटते जाने से पृथ्वी खतरे में आ गई है; अब पृथ्वी green zone में नहीं orange zone में है और red zone की ओर बढ़ रही है इसीलिए आजकल हमको प्रलय पर आधारित फिल्में ज्यादा सच्ची लगती हैं क्यूंकि यह वो सच है जो इस समय घटित हो रहा है ,अब देखना यह है कि क्या हम passenger बनेंगे या Survivor .... अगर Survive करके passenger बने तो ही इज़्ज़त की बात है वरना बात होगी शर्म की ऐसा walle कहती है। That's all
Sumit Verma
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