Re framed : the movie "Bhoothnath",why movie "Bhoothnath" had failed ? :analysis of reasons and demonstrated solution


Re framed : the movie "Bhoothnath"

Re framed : the movie "Bhoothnath"

भूतनाथ movie भारत में बनी अच्छी हॉरर कॉमेडी ,ड्रामा type की मूवी है ।मुझे इस मूवी की सबसे अच्छी बात यह लगी थी कि यह फिल्म  horror based होने के बावजूद भी वासना की मिलावट से बच गई , इसके बदले इस फिल्म के  निर्माताओं द्वारा कहानी में रस की कमी कॉमेडी जोड़ कर पूरी की गई जो कि एक दुर्लभ प्रकार का experiment है ।मेरे कहने का मतलब है कि आमतौर पर ऐसा नही होता कि horror को कॉमेडी से इस कदर खूबसूरती से जोड़ा जा सके। मुझे ऐसी एक भी दूसरी  horror फिल्म याद नही है जिसमें ऐसा किया गया हो क्यूंकि आमतौर पर इन दोनों emotions की आपस में नही बनती।लेकिन फिर भी यह फिल्म थी तो भुतहा गतिविधियों पर ही आधारित, तो इसीलिए इस पर वही नियम लागू होता है जो horror films के लिए है कि horror फिल्मों का end horror को पैदा करते हुए ही होना चाहिए या sad end भी चलेगा लेकिन happy endings भूत की फिल्मों की अच्छी नही लगती और शायद इसी जगह पर  फिल्म भूतनाथ की कहानी में जोड़ा गया हास्य रस उस पर भारी पड़ गया था क्यूंकि भूतनाथ अगर किसी बुरे भूत की कहानी होती तो उसे आसानी से डरावना या negative end दिया जा सकता था लेकिन मिस्टर नाथ तो अच्छे थे, तो इसी वजह से मूवी को negative end देना मुश्किल हो गया होगा और इसी वजह से horror movie का नियम पूरा नही होने के चलते ही शायद यह फिल्म flop हो गई थी।.... 

मुझे नही पता ,यही वजह थी या कुछ और लेकिन तो भी मुझे लगता है कि अब भी इस कारण को सुधारे जाने की गुंजाइश है! कल्पना कीजिए कि कहानी में एक बुरी शक्ति की entry हो जाती है ।और किसकी गलती से ? यह होता है बंकु की मां अंजली की गलती से। यह तब की बात है जब अंजली को पता चला कि उनका बेटा एक आत्मा को देख सकता है , छू सकता है तो उन्होंने अपने पति को जल्द से जल्द घर आने को कहा हालांकि जल्द से जल्द घर पहुंचने में भी उन्हें दस दिन लगने वाले थे ।इस बीच अंजली को लगा कि उन्हें कुछ करना होगा नाथ की आत्मा से अपने बच्चे को बचाने के लिए ।तो अंजली library गई कि कोई  नई जानकारी मिले जो मददगार हो क्यूंकि इंटरनेट पर ढूंढ ढूंढ कर हारी लेकिन कुछ भी समझ नही आया कि क्या करे।अंजली बहुत परेशान हो रही थी तब एक आदमी ने अंजली की  बेचैनी देख उससे उसकी परेशानी का कारण पूछा तो अंजली ने अपनी परेशानी उसे बता दी । वो आदमी अंजली का हमउम्र लगता था ।तब उस आदमी ने अंजली को कहा कि ," जानती  हो अंजली ,इस library में सैकड़ों हजारों किताबें हैं लेकिन एक किताब यहां से हटाई जा चुकी है और तुम्हारी परेशानी को दूर करने की ताकत बस उस एक किताब में है। ....वो किताब मेरे पास है और मैं तुम्हारी मदद करूंगा लेकिन तुम मुझे कभी भूलना मत!" 

उसने यह बड़ी अजीब तरह से कहा लेकिन अंजली उस वक़्त इतनी डरी हुई थी कि इस पर ज्यादा ध्यान नही दिया ।अंजली उस आदमी पर विश्वास करके उसके घर गई ,उसने अपना नाम सिद्धांत बताया।अंजली को उसने अपने घर में वो किताब दी और एकांत दिया कि वो उसे पढ़ सके। वो किताब किसी बहुत जटिल भाषा में न होकर बस इंग्लिश में ही थी।अंजली ने जब किताब पढ़ ली तो वो वहां से जाने लगी । सिद्धांत अब वहां नही था तो book वहीं पर रखकर अंजली घर आ गई ।वो सोचती रही कि किताब की विधि का इस्तेमाल करूं या नही? लेकिन आखिर में उसने फैसला लिया कि करना चाहिए ! सिद्धांत ने कहा था कि, " इस दौरान अपना फोन बन्द रखना ,एक बार अगर फैसला लिया तो पूरा ज़रूर करना।" अंजली ने जैसी विधि किताब में देखी थी उसके मुताबिक ज़मीन पर काले रंग से एक pentagram बनाया और उस पर कुछ प्रतीक चित्रित कर दिए और ध्यान केंद्रित करने के लिए आंखें बन्द की।
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बंकू के पास से मिस्टर कैलाशनाथ उदास मन से उठ कर  दीवारों के आर पार होकर वहां आ गए जहां अंजली ध्यान लगा रही थी  और बंकू के भूतनाथ, मिस्टर नाथ उस पंचकोण यंत्र यानि उस pentagram पर आकर खड़े हो गए ।तब अंजली और कैलाशनाथ दोनों ही मानो ,कैलाशनाथ के भूतकाल में पहुंच गए । अंजली पहले भी सुन चुकी थी खुद , कैलाशनाथ  के  ही मुंह से कि उनके बेटे विजय ने साथ रहने से इंकार किया ,मिस्टर नाथ घर छोड़कर जा रहे अपने बेटे के पीछे भागे लेकिन पैर फिसला और सीढ़ियों से गिरने की वजह से उनकी मौत हो गई। अंजली को वो सब बिल्कुल अपनी आंखों के सामने होता दिखाई दिया मानो जैसे वो उस समय वहीं थी जब यह सब हुआ। भूतनाथ के लिए तो उनका बरसों पुराना दर्द बिल्कुल ताज़ा हो गया क्यूंकि उन्हें भी वो सब ऐसे याद आया जैसे सब अभी अभी हुआ हो।मिस्टर नाथ भी फिर से वही सब पुरानी बातें महसूस करके टूट गए और उनकी इस कमज़ोर हालत में pentagram ने उनको एक छोटी सी मिट्टी की मूर्ति में बदल दिया जो हूबहू उनके जैसी ही दिखती थी । 

उस मूर्ति के हाव भाव ऐसे थे जैसे कैलाशनाथ खुश हों जबकि सच्चाई यह थी कि मिस्टर नाथ की आत्मा उस मूर्ति के अंदर दर्द में कैद रहेगी इसीलिए अब मिस्टर नाथ खुद तो मूर्ति फोड़कर आज़ाद नही हो सकते थे। कुछ वक़्त के लिए अंजली ने बंकू को भूतनाथ से दूर कर ही दिया ।जब अंजली ने आंखें खोली तो नाथ के जैसी दिखने वाली मूर्ति ठीक पंचकोण यंत्र के बीचोबीच थी ।तभी ज़ोर से दरवाज़ा खटकाए जाने की आवाज़ हुई जैसे कोई दरवाज़ा पीट रहा हो ।अंजली ने डरते हुए दरवाज़ा खोला ।एक लड़की थी बाहर ,फौरन उसने कहा," तुम अपना फोन क्यूं नही उठा रही थी अंजली ? " उसने अंजली को बताया कि उसका नाम दिव्यानी है और अंजली की मां ने उससे संपर्क किया है क्यूंकि अंजली ने अपनी इस problem के बारे में अपनी मां को सबसे पहले बताया था । उसने अंजली को चेतावनी दी कि वो सिद्धांत की किसी भी बात में न आए पर अंजली ने बताया कि वो तो विधि कर भी चुकी है  तो दिव्यानी ने  पूछा," कहां हैं वो? अंजली ने कहा,"ऊपर...ऊपर वाले कमरे में " ,अंजली को समझ आ गया कि दिव्यानी मूर्ति के बारे में पूछ रही है पर दोनों जब ऊपर गईं तो मूर्ति वहां से गायब हो चुकी थी।दिव्यानी को समझ आ गया था कि अब कुछ भी कहना मुश्किल है कि क्या होने वाला है? 

तो उसने एक कारपेट से उस यंत्र को ढक दिया और उस कमरे के दरवाज़े को lock कर दिया और अंजली को उस कमरे को बंद ही रखने को कहा ।साथ ही दिव्यानी ने अंजली को बंकू का ध्यान रखने के लिए कहा ।उसने ऐसी एक भी बात नही कही जिससे अंजली को तसल्ली होती लेकिन अंजली समझ गई कि कुछ  तो छुपा रही है दिव्यानी ,इससे अंजली और भी डर गई।  दिव्यानी ने अंजली को कहा कि अंजली उस मूर्ति को ढूंढे और बाद में उसे फोन करे।...दिव्यानी जानती होगी कि अंजली को जल्द उसकी मदद की दुबारा ज़रूरत पड़ेगी।  बंकू इस बात से परेशान हो गया क्यूंकि भूतनाथ उसे अब नजर नही आते थे । विधि वाले उस बंद कमरे में जिसे दिव्यानी बंद कर चुकी थी अगर कैमरा लगाया  होता अंजली ने तो  देख पाती अंजली कि अगली रात कारपेट हटा था और pentagram कुछ पल के लिए प्रकाशमान हुआ था जैसे सचमुच का star हो।पिछले  बीते दो दिनों से बंकू बहुत परेशान था क्योंकि उसके भूतनाथ उसे अब नज़र नही आ रहे थे लेकिन उनके जैसा ही एक दूसरा दोस्त उसे अब मिल गया।

 उसने कहा कि उसका नाम williyath है और मिस्टर नाथ उसे कह गए हैं लौट कर आने तक  बंकू का ध्यान रखने को। बंकू ने जैसे मिस्टर नाथ का नाम भूतनाथ रखा था इसी तरह से उसने williyath का नाम willy रखा । अंजली को भी यह बात समझ में आ गयी कि बंकू अब भी अकेला नही है ।क्योंकि अंजली ने पाया कि बंकू अकेले में अपने आप से बातें करता रहता था लेकिन वास्तविकता यह थी कि वो उस समय willy के साथ होता था।लेकिन दो दिनों के साथ के बाद ही बंकू willy से डरा भी रहने लगा था। बंकू अब स्कूल में भी डरा डरा रहता था और प्रिंसिपल यह देख कर खुश थे।  बंकू के पिता आदित्य अभी 7 दिन बाद आने वाले थे लेकिन किस्मत ने साथ दिया और वो अगले दो दिन में घर आ सके ,आते ही धमाका हुआ ; इससे पहले अंजली कुछ बताती ,बंकू के चीखने की  आवाज़ आई ।बंकू के कमरे का दरवाज़ा इतनी बुरी तरह जाम पड़ गया था कि उसके पिता आदित्य टक्करें मारकर भी खोल नही पा रहे थे पर डरने की बात यह नही थी।डरने की बात तो यह थी कि बंद कमरे में कुछ ऐसा हो रहा था जो बंकू को चीखने के लिए मजबूर कर रहा था,उसे डरा रहा था ,उसकी  चीखें बाहर तक सुनाई दे रही थीं।फिर चीखें आना बन्द हो  गईं और दरवाज़ा भी खुल गया।पर बंकू गायब था।वो अपने कमरे में नही था,वो पूरे घर में कहीं भी नही था। अब अंजली के लिए दिव्यानी को फ़ोन करने का वक़्त आ गया था।

दिव्यानी ने घर आते ही अंजली से यह नही पूछा कि ,"कुछ बुरा हुआ है क्या?" बल्कि आते ही उसने पूछा,"मूर्ति मिली?" तब दिव्यानी ने उस बंद किए कमरे को खोला और उस pentagram को छुआ तो उसे एक दृश्य दिखा कि बन्द कमरे में  कैसे williyath निकला इसमे से ।दिव्यानी ने तब अंजली को बताया कि williyath और कैलाशनाथ अब एक सिक्के के दो पहलू बन गए हैं अंजली की गलती की वजह से ,इन दोनों में से कोई एक घर में हमेशा बना रहेगा लेकिन अगर एक मुक्त हो जाता है तो दूसरे को भी यह घर छोड़ कर जाना पड़ेगा।इसीलिए मूर्ति का मिलना ज़रूरी है क्योंकि मुक्ति williyath की नही हो सकती ,मुक्ति तो कैलाशनाथ की ही होगी ।लेकिन फिलहाल बंकू का मिलना ज़रूरी है तो इसीलिए मूर्ति का मिलना भी ज़रूरी है ताकि कैलाश को आज़ाद किया जा सके।

आदित्य ने अंजली को जब डाँटना शुरू किया तो दिव्यानी ने रोक दिया यह कहकर कि," इससे बंकू को कोई फायदा नही होगा!" दिव्यानी ने आदित्य को काम दिया कि वो जाकर कैलाश के बेटे विजय को मनाए और मुक्ति पूजा की तैयारी शुरू करें और इस बीच दिव्यानी और अंजली मिलकर मूर्ति को ढूंढने वाले थे। मूर्ति को ढूंढना आसान नही होने वाला ,willy तरह तरह के मायाजाल दिखा कर डरायेगा,दिव्यानी को पता था।दोनों को willy ने अलग कर दिया फिर अंजली के सामने दो दिव्यानी खड़ी थीं।दोनो दिव्यानियाँ एक दूसरे से लड़ने लगीं ।अंजली को कुछ समझ नही आया कि कौन असली थी कौन नकली तो अंजली मूर्ति को ढूंढने भागी ।अंजली के घर का वो एक पुराना कमरा था ,वहाँ एक छोटा सा अजीब निशान बना था ज़मीन पर, जिस पर एक कपड़ा ढका था।अंजली ने जब उस कपड़े को हटाया तो फूट फूट कर रो पड़ी क्यूंकि वो मूर्ति बंकू जैसी दिखती थी जो उस रहस्यमय निशान के बीचों-बीच रखी थी।अंजली को लगा कि शैतान ने बंकू को मूर्ति बना दिया जैसे उसने कैलाश को बनाया था,इसीलिए अंजली दहाड़ें मार मार कर रोने लगी। पर उस सुनसान कमरे में अंजली को दिव्यानी की आवाजें गूंजती महसूस हुई।दिव्यानी कह रही थी ,"तुम्हारे हाथ में कैलाश की मूर्ति है अंजली । उसे तोड़ दो! ....यह मुझे तुम तक आने नही देगा।" अंजली को तो वो मूर्ति बंकू के जैसी ही दिख रही थी,पर जब अंजली के कान उन आवाजों का बोझ नही झेल पाए तो अंजली ने मूर्ति को दीवार पर फेंक कर तोड़ दिया।....वो कैलाश की ही मूर्ति थी! कैलाश के आज़ाद होते ही willy को जाना पड़ा ,क्योंकि घर में इन दोनों में से एक बार में एक ही प्रकट रह सकता था । 

बंकू अपने उसी कमरे से बाहर आया जिससे वो गायब हुआ था।अंजली अपने बंकू को बाहों में लेकर चूमने लगी तो दिव्यानी ने थकी सी आवाज़ में कहा ,"  अभी खुश होने की ज़रूरत नही है! खतरा अभी टला नही है।...माफ करना तुम्हे देने के लिए मेरे पास बुरी खबरें ही होती हैं ।मुझे बंकू को देखने दो ! बंकू अपनी आंखें बंद कर के बताओ तुम्हे क्या दिखता है?" बंकू ने बताया कि उसे एक विशाल पत्थर का बना दरवाज़ा दिख रहा है और वो खुद को उसके सामने ही खड़ा देख पा रहा है,इतने करीब कि अगर वो चाहे तो उसे छू सकता है । जैसा description उस दरवाज़े का बंकू ने बताया, दिव्यानी ने  सुन कर समझ लिया कि अब कैलाश बंकू की आत्मा को साथ ले जाने की कोशिश करेगा क्योंकि कैलाशनाथ दुबारा अपने पोते जैसे बंकू से दूर नही होना चाहता और वो जान चुका है कि सब मिलकर उसे दूर कर ही देंगे। अब धीरे धीरे बंकू मौत की ओर जाता जाएगा ,असर भी दिखा : बंकू बेहोश हो गया।और कमाल की बात तो यह है कि इस सब में कैलाश का कोई भी दोष नही क्योंकि उनकी हमेशा बंकू के साथ बने रहने की इच्छा से यह सब अपने आप हो रहा था।इस मसले का हल यही था कि बंकू का दम टूटे उससे पहले ही कैलाश को मुक्त कर दिया जाए। और आदित्य ने सारी तैयारी कर दी थी। पण्डित जी आ चुके थे और कैलाश का बेटा और बाकी लोग भी आ चुके थे।लेकिन पण्डित जी पूजा की शुरुआत नही कर सके ,यज्ञग्नि जलाने से पहले ही वो गायब हो गए। सब लोग चिल्ला पड़े।तब दिव्यानी अपनी जगह से उठी(शायद उसे कैलाशनाथ दिख पा रहे थे) और उसने कैलाश से excitement  में कैलाश से सवाल करना शुरू कर दिया,"आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ? आप तो अच्छे इंसान हैं ।आप willy के जैसे नही हैं ।मैं आपको यह नही करने दूंगी!" जैसे ही दिव्यानी ने कहा कि ," मैं आपको यह नहीं करने दूंगी" तो ऐसा कहने के अगले ही पल सबके देखते देखते वो भी कहीं गायब हो गई ।

कैलाशनाथ ने अपना इरादा जता दिया था।लेकिन अब अंजली ने प्रेमपूर्वक कैलाशनाथ को समझाया ,अपने किये के लिए क्षमा मांगी ।कैलाशनाथ  को आखिर दया आ गई। उन्होंने पंडित और दिव्यानी को वापस लौटा दिया।लेकिन पंडित तो सर पर पैर रखकर वहां से भागने लगा तब अंजली ने पंडित को मनाया ,हाथ पांव जोड़े।पंडित को भी मां की ममता देख बल मिला।उसके बाद पूजा शुरू हुई मगर और कोई विघ्न नही आया । पूजा नीचे के हॉल में हो रही थी ।पूजा के चलने के दौरान वो पंचकोण यंत्र जो ऊपर के कमरे में था प्रकाशमान हुआ और मिटता चला गया यानि अब williyath कभी इस घर में दुबारा नही आने वाला और यह एक इशारा था दिव्यानी को कि कैलाशनाथ की मुक्ति अब नजदीक है(पंचकोण यंत्र का मिटना दिव्यानी को महसूस हुआ था )।पूरे घर की लाइट्स ऑन ऑफ हुईं और फिर सब सामान्य हो गया। बंकू भी जाग गया। अंजली अब फौरन खुश नहीं हुई, उसने बंकू के लिए दिव्यानी से पूछा ," यह अब ठीक है ?" दिव्यानी ने कहा ," पता कर लेते हैं! बंकू अपनी आंखें बन्द करो और बताओ क्या दिखता है ?" बंकू का जवाब था कि उसे अब कुछ नही दिख रहा जो इशारा था कि सब ठीक हो चुका है।आदित्य ने तय किया कि वो तब तक रुकेंगे जब तक नया घर नही मिल जाता । शिफ्टिंग के दौरान कार में बैठकर सब उसी रास्ते से गुज़रे जिस पर सिद्धांत का घर था।लेकिन सिद्धांत का घर अब उस रास्ते पर था ही नहीं; रातों-रात वो भी कहीं गायब हो गया था,जबकि अंजली को पक्के तौर पर याद था कि वो घर कहां था। इसके अलावा बंकू आगे भी आत्माओं को देख सकेगा , उसके साथ हुए घटनाक्रमों का यह असर रहेगा and that's all 

  मेरे ख्याल से अच्छा ही होता अगर "भूतनाथ" movie अपने अंत की ओर जाते हुए अपने वास्तविक emotion से यानि "डर" से पूरी तरह जुड़ जाती ,पर यह सिर्फ एक ख्याल है ।...ज़िन्दगी में भी तो ऐसा ही होता है ; हम ज़िन्दगी भर किसी भी तरह से जी सकते हैं पर अंत तक जीवन की सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार होना ही पड़ता है ।                  

                                                                                                                                           Sumit Verma

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