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Bollywood horror फिल्मों की problem ...what I feel !
कोई कहानी लिखना एक इंसान की रचना करने के जैसा होता है यानि जैसे अपना बच्चा पैदा करना। इस हिसाब से सोच लीजिए कि हर लेखक हज़ारों बच्चों की मां होती है ! बच्चों की बात चली है तो सबको पता है कि हमारा बच्चा दूसरों के बच्चों से ,यहां तक कि कईं मामलों में हम तक से बेहतर होगा ,तो कयीं जगहों पर वो दूसरे बच्चों से कमज़ोर भी रहेगा । कुदरत का कानून है यह जो हर जगह समान रूप से लागू है ,हर बच्चा जैसे अलग है हर कहानी भी वैसे ही अपने आप में अलग होती है और इतनी सी बात Bollywood में ज्यादातर horror फिल्मों के निर्माता नही समझते !माना की Raaz 1में कहानी इतनी दमदार थी कि जितनी भी वासना इसमें मिलाई गयी तो उसके बाद भी Raaz 1 ने न सिर्फ इसे झेला बल्कि इसके साथ horror भी पैदा कर पाई लेकिन उसके बाद फिर Raaz 2,Raaz 3 आपका तो पता नही लेकिन मेरे मन का horror मीटर कुछ खास हिला नही पाई यह दोनों फिल्में ,क्योंकि यार horror जो रस होता है यह बहुत ही sensitive रस होता है, कहानी का ज्यादा सरल या पेचीदा होना भी इस कोमल रस को कहानी में circulate होने में दिक्कत दे सकता है , horror रस की थोड़ी बहुत हास्य रस के साथ जोड़ी बन जाती है लेकिन वासना जैसे तेज़ रस के साथ 100 में से 99 बार इसका मेल नही जमता । 'भूतनाथ' movie के ऊपर भी मैं पिछले blog में चर्चा कर चुका हूं
जो उस दुर्लभ स्थिति का उदाहरण थी जब comedy की horror से खूब बनी ,इसी तरह से Raaz 1 उस दुर्लभ स्थिति का उदाहरण है जब वासना की मौजूदगी में भी horror रस कमज़ोर पड़ने के बजाय शक्तिशाली हो गया था लेकिन ऐसा Razz series की अगली किसी movie में नही हो पाया ! हर horror story इतनी powerful नही होती कि lust को झेल कर भी हर बार horror create कर ही जाए क्योंकि आमतौर पर इन दोनों रसों के बीच 36का आंकड़ा रहता है , consequently जहां वासना रस अधिक होता है डर कमज़ोर पड़ जाता है और जहां डर होगा वहां वासना नही टिकेगी । Hollywood horror फिल्मों के ज्यादातर निर्माता इस नियम को समझ चुके हैं , जबकि Raaz 1की सफलता के बाद तो जैसे Bollywood में एक परम्परा ही शुरू हो गई horror फिल्मों को ज़बरदस्ती वासना से जोड़ने की चाहें कहानी का ढांचा इसकी इजाज़त न भी देता हो !
लेकिन इसका सारा दोष मैं Raaz 1 की सफलता को नही देना चाहूंगा क्योंकि एक संभावना यह भी है कि शायद Bollywood में ज्यादा डरावनी फिल्मों के बैन होने का खतरा महसूस करते हैं horror फिल्मों के निर्माता, और एक फिल्म बनाने में करोड़ों की लागत आती है तो शायद अपनी फिल्म को lite रखने के लिए ही वो जानबूझ कर कहानी में ढेर सारी वासना भर देते होंगे ,यह भी कारण हो सकता है ! चाहें जो भी हो , horror का स्वाद चखने के मामले में मैं आजकल Bollywood horror फिल्मों से संतुष्ट नही हो पाता।....एक अजीब बात यह भी है कि चलो मैं मानता हूं ,अपना देश बहूत धार्मिक आस्था वाला देश है ,किसी भी रस से ज्यादा यहां love के ऊपर यानि प्रेमरस के ऊपर फिल्में बनती हैं इसीलिए मार-धाड़ वाली फिल्मों में भी यह ध्यान रखा जाता है कि खून खराबा कहीं बहुत ज्यादा न हो जाए इसीलिए horror फिल्मों में वासना की थोड़ी बहूत मात्रा देख कर यह समझ में आता है,
I mean एक दूसरे को यह कहकर समझा सकते हैं कि," यार, प्यार मोहब्बत वाला अपना देश है इतना तो चलता है" लेकिन horror फिल्मों में वासना का भरपूर इस्तेमाल जब मैं देखता हूँ तो सोचने लग जाता हूँ कि," क्या हम लोग आजकल वासना को ही प्यार मानने लग गये हैं? प्यार के ऊपर जो फिल्में बनती हैं उनमें तो वासना है ही , horror तक को नही छोड़ा!" Bollywood horror फिल्मों को देखकर मैं अक्सर खुद से यह सवाल पूछने लग जाता हूँ कि,"सच्चे प्यार जैसा कुछ होता भी है या नही?" है न अजीब बात कि Bollywood horror फिल्में आजकल डर के अलावा हमें और बहुत कुछ महसूस कराती हैं ।
थोड़ा बहुत यह भी अच्छा ही है पर अच्छा नही भी है क्योंकि डरा ही न पाए तो कैसी horror movie ? मेरे ख्याल से तो Bollywood में love, sex और horror के बीच उस सरहद को ढूंढा जाना चाहिए ,कहानियां लिखते समय लेखक और फिल्में बनाते समय निर्मातागण जिसका ध्यान रखेंगे तो story और भी निखर कर आएगी जैसे कि किसी recipe के सारे flavors के बीच balance उस recipe का स्वाद बढ़ाता है और देखा जाए तो फिल्में भी तो एक new recipe (new story) पर बनी dish ही तो हैं ,एक बेहद खास dish ,ऐसी dish कि एक बार बनने पर जिसका स्वाद 50 से 100 साल तक फीका नही पड़ता ....इतना तो can food भी नही चलता ।
Thank you for listening !
Sumit Verma
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