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About all that I actually learnt from the movie Noah.
आज हम बात करेंगे उन movies में से एक के बारे में जो movie उन movies में से एक है जो movies अच्छा story base होने के बावजूद भी कुछ देशों में अजीब वजहों से ban हो गई थीं। तो चलिए शुरू करते हैं
Noah movie वाकई ज़बरदस्त है।
साल 2014 की इस movie के अंदर कई सारी famous हस्तियां हैं जैसे कि Russell Crowe, Emma Watson, Jennifer Connelly वगैरह। Movie के director हैं Darren Aronofsky ,तो Darren के इस movie को दिए निर्देशन को बहुत तारीफ मिली क्यूंकि Noah movie के रूप में वो एक बेहतरीन classic project को नए अंदाज़ में सफलतापूर्वक बड़े पर्दे पर उतारने में कामयाब हुए थे ।
वहीं दूसरी ओर कई लोगों को इस movie से एक शिकायत भी रही; उनका यह कहना था कि," यह movie बाईबल का आधार लेकर बनाई गई है लेकिन इसकी story बाईबल से बहुत दूर भटक गई है।".... यह बात तो सच है कि Noah की कहानी बाईबल से प्रेरित है इसीलिए इसकी इस बात से किसी भी ईसाई को दिक्कत हो तो हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए लेकिन इस्लाम धर्म में 'नोहा' एक पवित्र नाम होने की वजह से मुसलमानों को भी इस movie से दिक्कत होगी यह किसने सोचा था?
कई बार इत्तेफाक भी सच्चाई की Jigsaw puzzle का एक ऐसा टुकड़ा बन जाते हैं जिनको अपनी जगह रख कर तस्वीर को पूरा करना भारी पड़ता है और क्योंकि इत्तेफ़ाक़न होते हैं इत्तेफाक तो अक्सर हमारा वक्त रहते इन पर ध्यान भी नहीं जा पाता, जैसे कि Noah movie के मामले में हम मान सकते हैं कि Darren का इतनी दूर की संभावना पर ध्यान नहीं गया होगा कि मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को movie के नाम से ठेस लग सकती है। ... मुसलमानों की तो छोड़िए , मुझे तो लगता है कि Darren का ध्यान तो इस बात पर भी शायद ही गया हो कि इससे ईसाइयों की भावना को भी ठेस लगेगी चाहें आंशिक ही सही!
कईं बार वक्त रहते इत्तेफ़ाक़न हो रहे बदलावों पर हमारा ध्यान जाता भी है तो भी हम वक्त रहते खुद को रोक नहीं पाते, जैसे Noah movie के मामले में ही हम यह भी मान सकते हैं कि ,"Noah movie का यह नाम "Noah" मुसलमानों को अच्छा नहीं लगेगा!" इस इतनी दूर की संभावना पर भी Darren का ध्यान गया होगा लेकिन उनके मन को "Noah" से बढ़कर इस movie का कोई दूसरा नाम पसंद नहीं आया होगा जिससे उन्होंने यह risk लेने की सोची होगी और अपने मन को यह कह कर शांत किया होगा कि," इतना ध्यान कोई नहीं देगा इन बातों पर ।"... कमाल है न कि कभी कभी हम दूसरों का ध्यान पाना भी चाहते हैं और कभी कहीं पर नहीं भी पाना चाहते । अपनी निजी जिंदगी में भी जितना ज़रूरी हमारे लिए ध्यान को एक जगह लगाना होता है उतना ही जरूरी वक्त आने पर ध्यान को हटाना भी होता है (1) पुराने विषय से भी, और ध्यान देना पड़ता है (2) पुराने विषय से ध्यान को नए विषय पर केंद्रित करने के दौरान ध्यान को उल्टी सीधी दिशा में भटकने से बचाने पर भी।
ज़िंदगी में अक्सर भारी बदलाव होते हैं जो हमारी इस क्षमता की भरपूर कसरत कराते रहते हैं और हमें इससे जोड़े रहते हैं , जैसे कि उदाहरण के रूप में कोई student पढ़ाई पर बने रहने के लिए कितना अपने मन को इधर उधर भटकने से बचाता होगा कि उसका मन पढ़ाई में लगता रहे और इस स्थिति में फिर वो अच्छे से adjust हो जाता है, लेकिन पढ़ाई पूरी होते चले जाने पर अब वो student जानता है कि अब उसे एक और भारी बदलाव स्वीकार करना है क्योंकि अब नौकरी या business के नाम पर ज़िंदगी ऐसी हो जाएगी कि पुराने समय के जैसे ज्ञान पाने के मौकों से ज्यादा अब प्राप्त किए ज्ञान के प्रयोग के मौके ज़िंदगी में ज्यादा भर जाएंगे, तो इस स्थिति के आने से पहले वो अपने मन को set करने लगता है । इसी प्रकार से अकेले ही रहने के हिसाब से ढली ज़िन्दगी जीने के आदी हमारे मन को शादी के वक्त, आने वाले वक्त के अंजान बदलावों को स्वीकार करने को तैयार करने लगते हैं हम और मन को सकारात्मक होकर यह भरोसा भी दिलाते हैं कि "सब ठीक होगा !" कोशिश को पूरा रखते हुए मन को ऐसा भरोसा दिलाना ज़रूरी भी है ताकि कोशिश अपने अंज़ाम को अच्छे से प्राप्त करे इसीलिए Darren ने जो किया वो एक normal Decision था लेकिन इससे मुझे यह ज़रूर समझने का मौका मिला कि एक director की कितनी पेचीदा भूमिका होती है किसी भी कहानी में।
देखा जाए तो हम सब भी अपनी-अपनी ज़िंदगी रूपी फ़िल्म के director से कम नहीं और बात यह भी है कि किसी movie के निर्माण के दौरान producer का हर समय दांव पर बहुत कुछ लगा होता है लेकिन producer से ज्यादा director के लिए शांत रहना ज़रूरी होता है अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए वरना पक्का नुकसान तो बस हुआ रखा है। .... हमारी ज़िंदगी रूपी फ़िल्म का producer तो भगवान है और वो यह जानता है कि ज़िंदगी की फ़िल्म का निर्देशन करते हुए यानि ज़िंदगी को जीते हुए शांत रहना बहुत जरूरी है वरना producers की तगड़ी investment और फ़िल्म के लिए अच्छी कहानी मौजूद होने के बावजूद भी फ़िल्म अच्छी नहीं बनेगी अगर director ही सुलझा हुआ नहीं होगा तो! इसीलिए संसार में भी production companies किसी director को फ़िल्म के लिए बहुत जांच परख कर ही चुनती हैं।
सनातन धर्म कहता भी है कि भगवान ने भी हमें बहुत तरह से जांच परख कर और भरोसा पक्का होने पर ही हमें जानवर की योनियों से निकाल कर आखिरकार हमें इंसान के रुप में जन्म , इंसान की जिन्दगी और इंसान की जिन्दगी जीने के सही तरीके का ज्ञान , यह तीन बातें प्रदान की और इनके रुप में एक मुकम्मल मौका दिया हमें भी कि एक बार जिन्दगी के set पर खुद को योग्य director साबित करने का हमें मौका मिल जाए और मैं तो इस पर यकीन करता हूं।
भगवान हमारा producer है उसने हम पर हद से ज्यादा निवेश भी किया हुआ है , हम सबको जीने की वजहों की शक्ल में अच्छी-अच्छी scripts दी हुई हैं ; हर script यानि हर किसी की ज़िंदगी की कहानी अपने आप में unique है। और क्यूंकि भगवान के द्वारा directly हमको मिली हैं हमारी life रूपी scripts तो हमको हर वक्त यह भरोसा भी होना चाहिए कि जीवन में बेहतर से बेहतरीन होने की हर समय गुंजाइश है चाहें जिंदगी के हालात कैसे भी हों ! वैसे एक अच्छा सवाल है कि ज़िंदगी के बदलावों के दौरान इसकी कहानी को ठीक से आगे बढ़ाने के लिए हमें करना क्या है ? ... तो इसका जवाब है कि हमें वही करना है जिसके लिए हमारा producer यानि भगवान खुद शांत रहकर हमें प्रेरणा करता है यानि कि वही जो अच्छे director को करना भी चाहिए और वो यही कि ज़िंदगी की फ़िल्म की शूटिंग के दौरान हमें शांत रहना चाहिए ताकि पता चलता रहे कि बदले हालातों में ज़िंदगी की कहानी को सकारात्मक रूप से कैसे आगे बढ़ाए ? सीधे सीधे कहूं तो हमारी जिन्दगी को हमें एक फ़िल्म के जैसे स्वीकार कर लेना चाहिए जो भगवान की रची कल्पना मात्र है ।
यह याद रखने योग्य है कि किसी फ़िल्म का कोई director फ़िल्म के निर्माण को और कहानी के पहलुओं को भी गंभीरता से लेता ज़रूर है लेकिन इन दोनों पक्षों को वो खुद पर हावी होने से रोके भी रहता है। और शांत रहने की एक और वज़ह भी है और वो यह कि हमें शांत इसीलिए भी रहना है ताकि जीने का मज़ा हमको मिलता रहे क्योंकि इंसान के लिए सबसे जरूरी होता है मज़े करना , अब इस लिहाज से अगर देखा जाए तो इंसान के लिए शांति पाना ही सबकुछ है और इसीलिए हमें ऐसे कोई भी काम नहीं करने चाहिए जिससे मन की शांति जाती हो और इसके दो तरीके हैं : पहला तो यह कि हम उन सारे कामों को जानने की कोशिश करते रहें जिनसे मन की शांति में कमी आती है और उन कामों को करने से बचें और दूसरा तरीका यह कि हम उन सारी बातों को जानने की कोशिश करते रहें जो मन की शांति बढ़ाती हैं और उनको ज़रूर जीवन में अपनाएं।
कमाल है न कि जो सीखना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है और जिसे हम सीधे सीख भी नहीं सकते उसे भी हम किसी बहाने की मदद से आसानी से सीख लेते हैं जैसे कि अपनी ज़िंदगी की कहानी के director हम सब हैं ; इंसान के रुप में जन्म लेते ही बन गए थे लेकिन अपनी ज़िंदगी की कहानी को उपयुक्त दिशा निर्देशन देने के लिए हमें life को एक बन रही फ़िल्म के जैसे मानना ज़रूरी है ताकि हम किसी movie के director की तरह दो बातों को आसानी से करने लग जाएं: हमें पता होना चाहिए कि कोई movie director फ़िल्म की कहानी को सबसे पहले महसूस करने वाले इंसानों में से एक होता है और यह उसकी मजबूरी है कि उसे कहानी को किसी भी दर्शक से कई गुना ज्यादा अच्छा महसूस करना होता है कहानी चुनते समय भी और चुन लेने के बाद भी , क्यूंकि कोई अच्छी कहानी हाथ से निकल सकती है अगर वो कहानी पहली बार सुनते वक्त ठीक से महसूस न कर सका तो और कहानी पर अच्छा काम नहीं होगा अगर कहानी को चुन लेने के बाद उसे पहले से भी ज्यादा महसूस न कर पाया तो । यानि director की मजबूरी उसे महसूस करने की ज्यादा क्षमता से भरती है और उसकी यही खासियत जो एक मजबूरी की देन है वही अब महसूस करने की क्षमता बनी, यही क्षमता Movie बनने के बाद उसकी कहानी में झलकती है उस कहानी की ताकत बनकर क्योंकि अगर director ने कहानी के निर्माण के दौरान अच्छे से महसूस किया था तो movie भी अपने messages को आगे अच्छे से महसूस करा ही देगी, और दूसरी तगड़ी बात यह है कि director कहानी को producer का नुकसान बचाने की मजबूरी के चलते कहानी को लिखने वाले लेखक से भी बढ़कर कहानी को महसूस करने लगता है लेकिन इतना किसी कहानी को महसूस करने लग जाने पर अब director के मन पर कहानी के रस हावी होने की संभावना हो जाती है या फिर इस हद तक कहानी को महसूस कर लेने के बाद director को कहानी की वास्तविक value समझ में अब आ गई होती है और अगर वो आर्थिक रूप से ज्यादा है तो director के दिमाग़ को लालच प्रभावित करने की कोशिश करता है काम से ध्यान भटकाने वाले distraction के रूप में , इन दोनों ही स्थितियों में director को अपने काम में मन को स्थिर रखना मुश्किल होता है चाहें वो किसी Bollywood movie का कोई director हो या अपनी ज़िंदगी रूपी फ़िल्म के हम सब directors ही क्यों न हों पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता , दोनों ही जगह यह नियम एक समान ही असर करता है । हम अगर अपनी जिन्दगी रूपी कहानी की वास्तविक value नहीं समझ पाए ( ठीक से ज़िन्दगी को feel न कर पाए) तो भी ज़िन्दगी की फ़िल्म में actor-director की अपनी भूमिका निभाने में दिक्कत होगी और समझने लगें तो भी दिक्कत होगी लेकिन सही निर्देशन करके कहानी में चार चांद लगाने को लेकर सबसे बड़ा advantage बनती है यह बात कि हम ज़िन्दगी को feel करना शुरू होने पर इस जिंदगी रूपी script के रसों में पूरी तरह बह जाने से खुद को रोकने की कोशिश करें और ज़िन्दगी के आर्थिक मूल्यों को समझने लगने पर लालच में बह जाने से खुद को बचाए ,यानि ज़िन्दगी की script पर ठीक से काम होता रहे जिससे अंत में एक सुंदर फ़िल्म बनकर सामने आए यानि ज़िन्दग़ी हम अच्छे से जी सकें और अंत तक भी जी हुई ज़िन्दग़ी को लेकर हमारे मन में पश्चाताप या छूट गयी कमी को लेकर दुःख न होने पाए इसके लिए best way न तो ज़िन्दग़ी को बेकाबू होकर feel करना है, जिसे जीवन से मोह करना भी कहते हैं (दुनिया में बहुत से लोगों के जीने का देखा जाने वाला तरीका) इस तरह जीवन जीने से हमें बचना चाहिए और जीवन से ज्यादा से ज्यादा हासिल करने का लालच भी न करें ( ज्यादा लालची होकर भी जीना एक common ग़लत रास्ता है जीने का) थोड़ा मोह, थोड़ा लालच कोई ग़लत नहीं लेकिन ज़िन्दग़ी जीने की main theme के तौर पर हममें हमारे producers का नुकसान बचाने की भावना होनी चाहिए ( जीने का सबसे special तरीका जिससे फिल्में तो अच्छी बना ली जाती हैं पर बहुत ही कम लोग जिस तरीक़ से ज़िन्दग़ी को जी पाते हैं)
आगे के Blog में हम इसे ही जानेंगे और सच तो यह है कि हमारी निर्देशन क्षमता को प्रभावित करता ज़िन्दग़ी की कहानी के रस को बिगाड़ता हमारे मन का बढ़ता लालच व मोह पूरी तरह शांत भी तभी होता है जब हम producers के फायदे नुकसान की फिक्र करते हुए जीवन की फ़िल्म में कलाकार बनकर अभिनय और इसकी कहानी का director बन का निर्देशन कर पाते हैं क्योंकि इसी से अपनी क्षमता पर सच्चा control मिलता है। आइए इसे समझते हैं! ....
to be continued
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